बैर बढ़ाता नेपाल

नेपाली संसद के निचले सदन ने जिस तरह उस विवादित मानचित्र को मंजूरी दे दी, जिसमें उत्तराखंड के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल का बताया गया है, उससे यही प्रकट होता है कि वहां की सरकार भारत से बैर बढ़ाने पर आमादा है। चूंकि नेपाल की सरकार इस मामले में हद से ज्यादा आगे बढ़ गई है, इसलिए वहां के विपक्षी दल भी नीर-क्षीर ढंग से विचार करने के बजाय सत्ताधारी दल से आगे निकलने की होड़ से ग्रस्त हो गए हैं। इसके चलते अंदेशा इस बात का है कि नेपाल की जनता के बीच भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम जोर पकड़ सकता है। बीते दिनों नेपाली सुरक्षा बल ने बिहार के सीतामढ़ी जिले से लगती सीमा पर जिस तरह भारतीय नागरिकों पर फायरिंग कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी, वह माहौल बिगाड़ने की हरकत के अलावा और कुछ नहीं। नेपाल की मौजूदा सरकार के रुख से यह साफ है कि वह इस बात को महत्व देने को तैयार नहीं कि दोनों देशों के सांस्कृतिक-सामाजिक संबंध सदियों पुराने हैं। इन्हीं घनिष्ठ संबंधों के चलते दोनों देशों के लोगों को एक-दूसरे के यहां विशेष सुविधाएं हासिल हैं। इन पर कुठाराघात ठीक नहीं।

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